चीन की सैन्य परेड 2025 और वैश्विक शक्ति संतुलन: एक रणनीतिक विश्लेषण
प्रस्तावना
3 सितंबर 2025 को बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर में आयोजित चीन की भव्य सैन्य परेड केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं थी, बल्कि यह एक सामरिक और कूटनीतिक प्रदर्शन था। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर जीत की 80वीं वर्षगांठ के बहाने चीन ने विश्व को यह संदेश दिया कि वह न केवल एशिया, बल्कि पूरे वैश्विक शक्ति-संतुलन में एक निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी कर चुका है।
परेड में दिखाई गई हाइपरसोनिक मिसाइलें, मानवरहित ड्रोन, साइबर युद्ध इकाइयाँ, पनडुब्बी तकनीक और अंतरिक्ष-आधारित हथियार यह संकेत देते हैं कि चीन तकनीकी और सैन्य दृष्टि से अमेरिका व उसके सहयोगियों को चुनौती देने की स्थिति में पहुँच चुका है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की उपस्थिति इस आयोजन को और भी विशेष बनाती है। यह एक उभरते हुए “पश्चिम-विरोधी गठबंधन” की झलक है, जो अमेरिका-यूरोप आधारित विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकता है।
चीन का संदेश: शक्ति और वैकल्पिक नेतृत्व की पेशकश
शी जिनपिंग का यह कथन कि “चीनी लोग इतिहास के सही पक्ष पर खड़े हैं” केवल एक भावनात्मक वक्तव्य नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक घोषणा थी। इसका सार यह है कि:
- चीन अब केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति है।
- वह पश्चिम के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए तैयार है।
- चीन उन देशों को नेतृत्व देने का दावा करता है, जो पश्चिमी नीतियों से असंतुष्ट हैं।
यह संदेश विशेषकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के उन देशों को आकर्षित करने का प्रयास है, जो पश्चिमी प्रभुत्व और वैश्विक संस्थाओं (IMF, World Bank, NATO) की नीतियों से असंतुष्ट रहे हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: पश्चिम बनाम उभरती धुरी
चीन की इस परेड को एक व्यापक भूराजनीतिक समीकरण में समझना होगा:
- रूस: यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पश्चिम से अलग-थलग हो गया है। चीन उसके लिए सबसे बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है।
- उत्तर कोरिया: पहले से ही अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ टकराव की स्थिति में है। चीन के साथ उसकी साझेदारी अमेरिका के लिए नई सुरक्षा चुनौती है।
- इरान और म्यांमार जैसे देश: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के ज़रिए चीन इनके साथ भी एक व्यापक सुरक्षा और कूटनीतिक नेटवर्क खड़ा कर रहा है।
पश्चिमी नेताओं की अनुपस्थिति इस आयोजन को एक स्पष्ट पश्चिम-विरोधी स्वरूप देती है। यह संकेत है कि वैश्विक राजनीति में अब “नए गुट” का उदय हो रहा है।
भारत के लिए निहितार्थ
भारत इस नए शक्ति संतुलन के केंद्र में है। चीन की परेड और उसके संदेश भारत के लिए बहुआयामी चुनौतियाँ खड़ी करते हैं:
1. सुरक्षा पर असर
- चीन की हाइपरसोनिक मिसाइलें और ड्रोन तकनीक भारत की पारंपरिक सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देती हैं।
- भारत-चीन सीमा पर पहले से ही तनाव मौजूद है (डोकलाम, गलवान, अरुणाचल विवाद)। ऐसे में चीन की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भारत को सीधे प्रभावित करता है।
2. कूटनीतिक दबाव
- भारत क्वाड (QUAD) और I2U2 जैसे पश्चिम समर्थित मंचों में शामिल है।
- लेकिन वह BRICS और SCO जैसे मंचों का भी हिस्सा है।
- चीन चाहता है कि भारत पश्चिम से दूरी बनाए, जबकि अमेरिका चाहता है कि भारत चीन के खिलाफ खड़ा हो।
3. आर्थिक पहलू
- चीन की तकनीकी क्षमता (AI, साइबर, स्पेस) भारत के लिए प्रतिस्पर्धा और अवसर दोनों है।
- भारत को अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता बढ़ाने और Atmanirbhar Bharat के तहत आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग विकसित करने की आवश्यकता है।
घरेलू राजनीति और राष्ट्रवाद
यह परेड केवल अंतरराष्ट्रीय संदेश ही नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति का भी हिस्सा थी।
- चीन की अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में मंदी और बेरोजगारी की चुनौतियों से जूझ रही है।
- सेना में भ्रष्टाचार और नेताओं की असहमति की ख़बरें भी सामने आती रही हैं।
- ऐसे में यह परेड राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रवाद और शी जिनपिंग के नेतृत्व को मजबूत करने का साधन बनी।
वैश्विक शक्ति-संतुलन में बदलाव
इस आयोजन के बाद यह स्पष्ट है कि आने वाले दशक में:
- अमेरिका-यूरोप बनाम चीन-रूस धुरी का टकराव और गहराएगा।
- एशिया में ताइवान और दक्षिण चीन सागर संघर्ष का केंद्र बने रहेंगे।
- भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) को बचाते हुए बहुपक्षीय कूटनीति का सहारा लेना होगा।
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थाएँ और अधिक ध्रुवीकृत हो सकती हैं।
UPSC GS Paper 2 के संदर्भ में
- International Relations: चीन-रूस-उत्तर कोरिया धुरी का उदय और उसका प्रभाव।
- India and its Neighbourhood: भारत-चीन संबंध और सीमा विवाद।
- Diplomacy: बहुपक्षीय संगठनों (SCO, BRICS, QUAD) में भारत की भूमिका।
UPSC GS Paper 3 के संदर्भ में
- Internal Security: चीन की साइबर और स्पेस युद्ध क्षमता का भारत पर असर।
- Defence Technology: हाइपरसोनिक मिसाइल और ड्रोन तकनीक में भारत की स्थिति।
- Strategic Preparedness: आत्मनिर्भर भारत और रक्षा उत्पादन क्षमता।
निष्कर्ष
चीन की 2025 की सैन्य परेड केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह एक वैश्विक रणनीतिक घोषणा थी। यह संकेत है कि आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अधिक ध्रुवीकृत और प्रतिस्पर्धी होने वाली है।
भारत जैसे देशों के लिए यह समय रणनीतिक संतुलन का है—न तो पूरी तरह पश्चिम के साथ और न ही पूरी तरह चीन-रूस के साथ। भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए बहुपक्षीय कूटनीति, आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता और पड़ोसी देशों के साथ सक्रिय संबंधों पर ध्यान देना होगा।
कुल मिलाकर, यह परेड केवल चीन की सैन्य ताकत का प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि यह विश्व व्यवस्था में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक थी।
Comments
Post a Comment